तवारीख है हमारी गवाह 'चिलमन'--
कि, हमको उनसे मिलने की चाह है।
पर, जब भी हम मिलते हैं उनसे आह भर कर,
उन्हें लगता है कि किसी दर्द की कराह है॥
जी किया कि गले लगा लूं ,
जी किया कि पास बुला लूं,
पर क्या करता चिलमन--
वर्षो से मिले ही न थे !
दर्द है तो होगा भी,
प्यार है तो धोखा भी,
जन्नत कहां नसीब चिलमन--
जो लोग बेवफा न हों !